-दोहा-
ऊँचो गढ़ चीणाय लियो,पण नीची थांकी सोच!
ऊँची डोड्यां उतरतां ही,सदा पड़ पग मोच!!
-दोहा-
ज्यों ज्यों ऊँचो कद बढ़यो,त्यों त्यों राखो धीर।
शीतल गुण सुजान को,ज्यों सरवर रो नीर।।
-दोहा-
नर रो पत है राजवी,नर रो पत है भूप।
जी दिन नर सु पत ग्यो,प्राण जायला छूट ।।
-दोहा-
मायड़ ऐड़ो पूत जन्म,रण म रम्ह झुंझार ।
शीश कट्यां धड़ लड़,बैरी शीश कटार।।
-दोहा-
रण बदल्यो रणभूमी बदळी,बदल्या रण रा धीर।
कलम रा तरकश माहीं भरो, शब्दां रा बस तीर।।
-दोहा-
तीर चाले ना भालो अब तो ना चाले तरवार।
दुनिया म तो आज हुव है,कलम री जय जयकार।।
-दोहा-
मौजा में तो मौजी रह्व,रण लडः रणधीर ।
संत रम्ह सत्संग माहि,कायर खोव धीर।।
-दोहा-
सोनी सोनो पारखी, लोहो परख लुहार।
जौहरी हीरो पारखी,क्षात्र परख तलवार।।
-दोहा-
साधू सज्जन स्नेही,है सत रा सर्जन हार।
इण री संगत माहि मिल्ह,जीवन रो सब सार।।।
-दोहा-
सत मत छोड़ो सज्जन स्नेही,सत छोड्या पत जाय।
उल्टा कर्म कमावणियाँ न,चुग चुग कागा खाय।।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें